मुंबई, 21 सितंबर। भारतीय सिनेमा की चमक-दमक के पीछे कलाकारों का संघर्ष अक्सर गहरा और प्रेरणादायक होता है। विशेषकर महिला कलाकारों के लिए, जो हमेशा से इस क्षेत्र में चुनौतियों का सामना करती आई हैं। दुर्गा खोटे और शांतिप्रिया, दो पीढ़ियों की प्रतिनिधि, इस संघर्ष और दृढ़ता की जीवंत मिसाल हैं।
इन दोनों ने न केवल अभिनय में अपनी पहचान बनाई, बल्कि पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए अपने जीवन को नई दिशा भी दी।
दुर्गा खोटे का जन्म 14 जनवरी 1905 को महाराष्ट्र के एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ। उस समय जब महिलाओं के लिए फिल्मों में काम करना सामाजिक कलंक माना जाता था, उन्होंने इस धारणा को चुनौती दी। महज 18 साल की उम्र में उनकी शादी विश्वनाथ खोटे से हुई, जो एक सफल मैकेनिकल इंजीनियर थे। कुछ वर्षों में वह दो बच्चों की मां बन गईं, लेकिन जब दुर्गा की उम्र केवल 20 साल थी, उनके पति का निधन हो गया। आर्थिक रूप से टूट चुकीं दुर्गा को अपने बच्चों का पालन-पोषण करने के लिए काम की तलाश थी।
शिक्षित होने के कारण उन्होंने ट्यूशन देना शुरू किया, लेकिन जब फिल्मों से प्रस्ताव मिला, तो उन्होंने उसे स्वीकार किया। उनकी पहली फिल्म 'फरेबी जाल' (1931) थी, जो सफल नहीं रही। लेकिन निर्देशक वी. शांताराम ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और फिल्म 'अयोध्येचा राजा' (1932) में तारामती की भूमिका दी। इस फिल्म ने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया। इसके बाद उन्होंने 'माया मच्छिंद्र', 'भरत मिलाप', 'मुगल-ए-आजम', 'बॉबी', 'कर्ज' जैसी कई सफल फिल्मों में काम किया।
दुर्गा ने 200 से अधिक फिल्मों में काम किया और भारतीय सिनेमा में 'मां' के किरदारों को एक नई गरिमा दी। उन्होंने 'फैक्ट फिल्म्स' नामक प्रोडक्शन हाउस भी स्थापित किया और कई शॉर्ट फिल्में बनाई। उनके योगदान के लिए उन्हें दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
22 सितंबर 1991 को 86 वर्ष की आयु में दुर्गा खोटे का निधन हो गया, लेकिन उन्होंने जो रास्ता बनाया, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना।
अब बात करें शांतिप्रिया की, तो उनका जन्म 22 सितंबर 1969 को आंध्रप्रदेश के रंगमपेटा गांव में हुआ। उन्होंने 18 वर्ष की उम्र में तमिल फिल्म 'एंगा ओरु पट्टुकरन' (1987) से अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों में 25 से अधिक फिल्में कीं, जिसमें वह एक सशक्त अभिनेत्री के रूप में जानी जाने लगीं।
1991 में उन्होंने अक्षय कुमार के साथ हिंदी फिल्म 'सौगंध' से बॉलीवुड में कदम रखा। यह फिल्म दोनों की पहली हिंदी फिल्म थी और सफल रही। इसके बाद उन्होंने 'मेरे सजना साथ निभाना', 'फूल और अंगार', 'मेहरबान', 'वीरता', 'इक्के पे इक्का' जैसी फिल्मों में काम किया। लेकिन 1994 के बाद उन्होंने अचानक फिल्म इंडस्ट्री से दूरी बना ली और परिवार पर ध्यान केंद्रित किया।
1999 में शांतिप्रिया ने अभिनेता सिद्धार्थ रे से शादी की, जो वी. शांताराम के पोते थे। उनके दो बेटे हुए, लेकिन 2004 में सिद्धार्थ का निधन हार्ट अटैक से हो गया। उस समय शांतिप्रिया का जीवन पूरी तरह बदल गया। उन्होंने न केवल अपने बच्चों को अकेले पाला, बल्कि खुद को भी टूटने से बचाया। लंबे समय बाद, शांतिप्रिया ने फिर से अभिनय की दुनिया में कदम रखा और 'माता की चौकी', 'द्वारकाधीश', और 'धारावी बैंक' जैसे धारावाहिकों में काम किया। 2023 में उन्हें इंटरनेशनल प्रेस्टिजियस वुमन आइकन अवार्ड से सम्मानित किया गया।
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